Here is another poem by our "Anaam" poet
.......after a long time....
"Anaam"
.......after a long time....
ओह उदयपुर !
कुछ तो है तुझ मेंजो इस रूह को झकझोर के रख देता है और हमें यहाँबारमबार आने को मजबूर कर देता है
क्या है इन झीलों की गहराइयों में क्या छिपा है उन छोटे छोटे पर्वतों के उस पार इन घूमती, बहकती गलियों मेंइन सुबहों के ठंडे झोंको में
कहाँ ले जाऊँ में उन बचपन की कहकती यादों को उन प्यार भरे लमहों को मंदिरों की घंटियों की पावन गूँजों को जो आज भी मेरे अंदर तक समाँ जाती हैं
यह महल, यह क़िले, यह झीलें,यह नन्हे पर्वत यह रंग बिरंगी सभ्यता यह दिल को छू जाने वाला प्यार, यह सरलता
उदयपुर ओह उदयपुर !कुछ तो है तुझ में
क्या है इन झीलों की गहराइयों में क्या छिपा है उन छोटे छोटे पर्वतों के उस पार इन घूमती, बहकती गलियों मेंइन सुबहों के ठंडे झोंको में
कहाँ ले जाऊँ में उन बचपन की कहकती यादों को उन प्यार भरे लमहों को मंदिरों की घंटियों की पावन गूँजों को जो आज भी मेरे अंदर तक समाँ जाती हैं
यह महल, यह क़िले, यह झीलें,यह नन्हे पर्वत यह रंग बिरंगी सभ्यता यह दिल को छू जाने वाला प्यार, यह सरलता
उदयपुर ओह उदयपुर !कुछ तो है तुझ में
"Anaam"
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